भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
3,955 bytes removed,
12:18, 25 मार्च 2008
देवेन्द्र आर्य {{KKGlobal}}== त्रिलोचन की कुछ ताज़ा ग़ज़लेंरचनाएँ== {{KKParichay**-**|चित्र=Trilochan.jpgग़ज़ल 1|नाम=देवेन्द्र आर्य--.--|उपनाम=यह भी हो सकता है अच्छा हो|जन्म=|जन्मस्थान= उत्तर प्रदेश, मगर धोखा होभारत|मृत्यु=|कृतियाँ|विविध=|जीवनी=[[देवेन्द्र आर्य / परिचय]]क्या पता गर्भ में पलता हुआ कल कैसा हो}}
भाप उड़ती हुई चीज़ें ही बिकेंगी अब तोशब्द हो, रेह हो, सपना हो या समझौता हो यूँ तो हर मोड़ पे मिल जाता है मुझसे लेकिनइस तरह मिलता है जैसे कि कभी देखा हो जाने कितनों ने लिखी अपनी कहानी इस परफिर भी लगता है मेरे दिल का वरक सादा हो रौशनी इतनी ज़ियादा भी नहीं ठीक मियाँये * [[यह भी हो सकता है आँखों में कोई सपना हो/ देवेन्द्र आर्य]]**--**ग़ज़ल 2[[मेरी भी आँख में गड़ता है भाईमगर रिश्तों में वो पड़ता है भाई जमाने की नहीं परवाह लेकिनवही आरोप जब मढ़ता है भाई खरी खोटी सुनाके लड़के मुझसेफिर अपने आप से लड़ता है भाई जिसे मैं भूल जाना चाहता हूँबराबर याद क्यों पड़ता है भाई भले कितना ही सुन्दर हो, सफल होमगर सपना भी तो सड़ता है भाई मुझे लगता है मैं ही बढ़ रहा हूँमेरे बदले में जब बढ़ता है भाई जिसे तुम शान से कहते हो ग़ैरवो अव्वल किस्म की जड़ता है भाई ये मामूली सा दिखता भाई चाराबहुत मंहगा कभी पड़ता है भाई/ देवेन्द्र आर्य]]**-** ग़ज़ल 3--.--[[आयो घोष बड़ो व्यापारीपोछ ले गयो नींद हमारी कभी जमूरा कभी मदारीइसको कहते हैं व्यापारी रंग गई मन की अंगिया-चूनरदेह ने जब मारी पिचकारी अपना उल्लू सीधा हो बसकैसा रिश्ता कैसी यारी आप नशे पर न्यौछावर होमैं अब जाऊँ किस पर वारी बिकते बिकते बिकते बिकतेरुह हो गई है सरकारी अब जब टूट गई ज़ंजीरेंक्या तुम जीते क्या मैं हारी भूख हिकारत और गरीबीकिसको कहते हैं खुद्दारी? दुनिया की सुंदरतम् कवितासोंधी रोटी, दाल बघारी/ देवेन्द्र आर्य]]**-**ग़ज़ल 4--.--[[किसी को सर चढ़ाया जा रहा है/ देवेन्द्र आर्य]]कोई रक्तन रुलाया जा रहा है* [[ / देवेन्द्र आर्य]]* [[ / देवेन्द्र आर्य]]ये आँखें आधुनिक दिखने लगेंगीनया सपना मंगाया जा रहा है जो पहले से खड़ा है हाशिए परवही बाँए दबाया जा रहा है कथाओं में नहीं अंट पा रहा जोउसे कविता में लाया जा रहा है बुजुर्गों ने जिसे पोसा है अब तकवो रिश्ता अब भुनाया जा रहा है हमारे बीच में जो अनकहा थावो शब्दों से मिटाया जा रहा है मैं कुर्बानी का बकरा तो नहीं हूँ?बड़ी इज्जत से लाया जा रहा है* [[ / देवेन्द्र आर्य]]* [[ / देवेन्द्र आर्य]]**-**- रचनाकार – [[ / देवेन्द्र आर्य की पहचान उनकी नए तेवर, नए अंदाज़ की ग़ज़लें हैं. रचनाकार में देवेन्द्र की कुछ अन्य विप्लवी किस्म की गज़लें आप यहां -]]http:* [[ //rachanakar.blogspot.com/2005/09/blog-post_06.html , यहाँ - http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_16.html तथा यहाँ - http://rachanakar.blogspot.com/2005/08/blog-post_20.html पर पढ़ सकते हैं.देवेन्द्र आर्य]] पहली पहली रेटिंग आप करें * [?[ / देवेन्द्र आर्य]]
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader