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होटों पे कभी जिनके दुआ तक नहीं आती
जीने की सही उनको उन्हें कोई अदा तक नहीं आती
घर करते हैं चुपके से मेरे हो दिल में वो ऐसे का मरज़ दूर भला कैसे कि अब तो आमद की दबे-पाँव, सदा महँगाई को मुफ़लिस पे दया तक नहीं आती
मुश्किल से महीने में बचाता है वो जितना
उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती
जिस्मों की नुमाइश ने उसे कर दिया रुसवा
करनी पे मगर उसको हया तक नहीं आती
मुश्किल से महीने में बचाता हूँ मैं जितना किसको हैं ज़माने की मयस्सर सभी ख़ुशियाँ उतने तक़दीर में तो खाँसी की दवा मुफ़लिस के क़बा तक नहीं आती
विज्ञान के आलिम हैं मगर हाल है ऐसा
इस दौर में जीने की कला तक नहीं आती
किसको हैं ज़माने की मयस्सर सभी ख़ुशियाँ तक़दीर में मुफ़लिस के क़बा तक नहीं आती  सय्याद ने प्यासा ही उसे कर दिया ज़िबहामासूम परिंदे पे दया तक नहीं आती  पछताएगा, मज़लूम पे ज़ालिम न जफा जफ़ा कर
क़ुदरत की तो लाठी की सदा तक नहीं आती
है नाम 'रक़ीब' अपना तभी तो मेरे नज़दीकआफ़त का हो क्या ज़िक्र , बला तक नहीं आती
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