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बताऊँ क्यों अजीब हूँ
मैं शायर-ओ-अदीब हूँ
धनी हूँ बात का सनम
भले ही मैं आदमी ग़रीब हूँ
मैं एक अन्दलीब हूँ
फ़क़त तेरा हबीब हूँ
ग़ज़ल ही सिन्फ़ है मेरी ग़ज़ल ही का तबीब हूँ कभी - कभी ये लगता है
मैं अपना ही 'रक़ीब' हूँ
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