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टेक- बरसैं घनश्याम बनी अखियाँ, दु:ख द्रुपद सुता कँह घेरे
हरी हरि टेरे ।।टेरे॥भीषम द्रोण नीच किये नैना, पाँचौ पती मोरी ओरियाँ लखैं नदुशासन चीर गहे रे ।।रे॥नृप कलिंग अरू अपर नरेसू, भय बस कोउ न करत उपदेशू ।।उपदेशू॥
कुरूपति मोरी हरन चहत लजिया, मुरलीधर अब न बचे रे
हरी हरि टेरे ।।1।।टेरे॥1॥
हमैं उघारि देखि कइसै पइहैं, प्यारे भीम सुधिया मोरी लेइहैं
तेउ अब मौन गहे रे ।।रे॥राधा रमण शरण मोहि जानी, अस कहि रोवति पांडव कै रानी ।।रानी॥
गिरिवर धर संतन मन बसिया, सुमिरत दइ हाँक करेरे
हरी हरि टेरे ।।2।।टेरे॥2॥
सुनतै टेर जसुदा के कन्हैया, पहुँचे जहाँ घेरी जइसै गइया
परी बधिकन्हे के फेरे ।।फेरे॥बसन रूप धरि बसन सुहायन, नए नए चरित करत नारायण ।।नारायण॥
रंगरेज बने ब्रज के बसिया, रंग एक से एक नये रे
हरी हरि टेरे ।।3।।टेरे॥3॥
द्रुपद सुता कै चीर घटै न, दस हजार गज बल की चलै ना
भये अचरज बहुतेरे ।।बहुतेरे॥‘रामराज’ जय जय बनमाली, मनावति भरि लोचन पांचाली ।।पांचाली॥
पांडव लखि सकल भये सुखिया, बरसैं सुर सुमन घनेरे
हरी हरि टेरे ।।4।।टेरे॥4॥
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