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|रचनाकार=विजयदान देथा 'बिज्‍जी'
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|संग्रह=ऊषा / विजयदान देथा 'बिज्‍जी'
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<poem>
ऊषे!
तुम्हीं ने... बोली री
क्या यह आमन्त्रण गान सुनाया?

मेरे तमिस-जीवन के
चिर सहचर प्रियतम को
देकर सब दुखमय जीवन का भार!

निद्रा के अदृश्य अपरिमित पट पर
देख रहा था होकर निमग्न
बस केवल तेरा ही
सुखमय सुन्दर स्वप्न!

चढ़कर उस स्वप्न-विहग की पाँखों पर
तुम्हें पाने की सुमधुर आशा में
उड़ रहा था गति सत्वर से
फर-फर कर मर-मर
होकर विह्नल-सा अति आकुल!

पर जाग रे जाग उठ.... ओ नादान युवक
स्वप्न का संसार त्याग
अम्बर के पट पर कर ले
सचमुच की ऊषा का दर्शन!
अरुण शिखी के
इस मधुर-मधुर कलरव में
मेर इस दीन दशा पर करुणा कर
किसने यह शुभ सन्देश दिया?

ऊषे!
तुम्हीं ने .... बोली री
क्या यह आमन्त्रण गान सुनाया ?
</poem>