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Kavita Kosh से
सब नवा नवा भर गोठियाथें
हंसिया कुदरी घर खेत कती
जाये खातिर बर ओतियाथें*!
बाबू साहेब अउ हवलदार
पढ़ लिख के कइ झन होवत हें!
पउवा बोतल कुकरा बोकरा
सौ पचास रूपिया म!
लुगरा पोलखा* घोतिया पटकू
अउ गहना-गुरिया म!
पैसा वाले मन गरीब के
नकटा बुचुवा मारे कूटे
चोर उचक्का डाकू !
लोफड़ लंपट छल परपंची
लोभी लुच्चाछ आगू!
पंच कउन सरपंच कउन
जनपद जिला पंचाइत!
गांव ठाँव के हित सेती* बर
एक ठन जबर सिका इत!
नोट म बोट सके ले खातिर
गंजहा भंगहा घूमय!
गहना गुरिया भड़वा बरतन
के कीमत म झूमय !
मंदिर स्कूल पंचइत भवन म
जुआ सट्टा खेंलंय !
अपन सब सिरवाके लइकन
मन बर पाप सके लंय !
असली सपूत हें गिने चुने
जे गाँव के लाज बचावत हें!
बिगड़त हें मोटियारी नोनी!
चोंगा डब्वा तो ठौर ठौर
अनसुरहा कस बोरियावत* हें!
जेकर हाथ लगाम थमायेन
न काठी ले ऐंड़ लगावंय
न कोड़ा चमकावंय!
अंधवा कनवा खोरवा* लुलुवाअउ डोकरा डोकरी के !
सुख सुविधा ल हवंय डकारत
जइसे सब पोगरी के !अपन भितिया खदर-कुरिया*
काया कलप करावत हें!
बदनाम घलव हें नाव बिचारी
मितानिन संगवारी के !
पंचाइत अउ का सुसाइटी
स्कूल का आंगन बारी के !कु छ सढ़वा बन कुछ हरहा* कसमौका पाके ओसरावत* हें!
कुछ रूप रंग म बउराये
कुछ चारा चर पगुरावत हें!
बइठे जउने डारा अड़हा
निरदइ असन बोंगियावत* हें!
लखनउ दिल्लीर का कानपुर अब
खोर-गिंजरा* मन बर पारा!
जकला भकला मन रहिन कहाँ