भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKPageNavigation
|पीछे=गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 9 / नूतन प्रसाद शर्मा
|आगे=गरीबा / राहेर पांत / पृष्ठ - 11 / नूतन प्रसाद शर्मा
|सारणी=गरीबा / नूतन प्रसाद शर्मा
}}
<poem>
मोर सलाह समझ ले तंय हा – तुम धनवा संग फिर जुड़ जावपहली के गल्ती ला भूलव, एतन बरय प्रेम के दीप।तुम दूनों मनबोध के पालक, ओहर जीवन मं सुख पायओकर भावी हा बन जाये, तुम दूनों के करतब काम।नेक सलाह दीस दुखिया हा, फगनी हा करलिस स्वीकारधनवा तिर जाये रजुवागे, उंकर जुड़त हे फिर संबंध।बड़े फजर हा खुशी ला लाथय, करत गरीबा उत्तम कामफगनी अउ मनबोध ला धरथय, धनवा के घर मं चल दीस।धनवा हा परिवार ला देखिस, हर्षित होत खुशी भरपूरबनत गरीबा के आभारी, मानत हे ओकर उपकार,कथय गरीबा हा धनवा ला -”तुम्हरे से हे इरखा खूबतुम्मन लड़ लेथव सोसन भर, तंहने फिर हो जाथव एक।एक दुसर ले हटके रहिथव, तुम्हर बीच मं होत वियोगपर खिंचाव आकर्षण रहिथय, आपुस बीच करत हव याद।तंहने तुम्मन फिर मिल जाथव, होवत हवय मिलन संयोगमन के कपट शत्रुता मिटथय, होवत नवा प्रेम संबंध।”गीस गरीबा हा निज घर मं, दुखिया के करथय तारीफ-“तंय हा जे उपाय जोंगे हस, ओहर सच मं हित के काम।धनवा ठीक राह पर लगगे, ओहर लीस अपन ला पांगओकर सब बकचण्डी उरकिस, बिख के दांत बिना हे सांप।अब ओकर परिवार हा जुड़गे, एकर बर तंय करे प्रयासधनवा अगर एक झन रहितिस, बदला बर रचतिस षड़यंत्र।धनवा जिम्मेदारी पाइस, ओहर बिधुन अपन बस कामअपन राह पर आहय जाहय, डिगन पाय नइ ओकर पांव।वास्तव मं एहर सच होवत, फगनी धनवा मन हें एकओमन सब संग काम ला जोंगत, छोड़ दीन अब अंड़ियल टेक।“ग्राम विकास समिति’ बनवाये, सुन्तापुर मं होत चुनावउम्मीदवार सबोतिर जावत, फोर बतात अपन सिद्धान्त।आखिर मं चुनाव हा होथय, ओकर निकलिस सच परिणामजेन सदस्य विजय ला अमरिन, ओकर नाम निम्न अनुसार –डकहर कातिक हगरू गरीबा, झरिहारिन केंवरी धनसाययद्यपि एमन विजय ला पाये, पर घमंड ला राखत दूर।धनवा हा सदस्य निर्वाचित तब कातिक ला गुस्सा।धनवा खड़े कलेचुप लेकिन कातिक देवत गारी।बखलिस -”अब तक ले धनवा हा, राज करिस जनता ला डांटओकर पास चलिस नइ ककरो, सब मानिन ओकर आदेश।पर अब सुम्मतराज के युग हे, नवयुग के स्वागत के टेमनवा नियम कानून बनावव, राज चलाय नया सिद्धान्त।याने जे मनखे मन पहिली, कष्ट झेल के प्राण बचैनओमन अब सुख सुविधा पावंय, कांटा गड़न पाय झन गोड़।बनंय उही मन गांव के मुखिया, उंकरे चलय नियम कानूनबोली उंकर कटन झन पावय, खुशदिल बइठंय आसन ऊंच।धनवा के चुनाव खारिज हो, ओकर पद हा होय समाप्तहमर गोड़ मं धनवा बइठय, ओहर करय हमर सम्मान।”मेहरू कथय -”अनुभवी धनवा, ओकर गुन के मिलिहय लाभओकर ठीक सलाह ला मानन, हम नइ मानन गलत सुझाव।अपन राज हम पाये हन अभि, करत घमंड बतावत टेसनिर्णय गलत हमन ले सकथन, काम बिगड़ रुक जहय विकास।जहां गलत निर्णय हम लेवन, धनवा हा मारय फट रोकधनवा अउ हम सब दल दिल मिल, काटन गांव के बिपदा दोख”नेक गोठ हा भींजिस तंहने, कातिक करिस तथ्य स्वीकारनवा व्यवस्था के रक्षा बर, मिहनत करत देंह ला गार।इही बीच मं पिनकू आथय, टहलू बोधनी संग मं अैतनहिरदे ले स्वागत होवत हे, एकोकन दुरछुर नइ होत।पिनकू मेटाडोर ला लाये, जेहर ओकर खुद के आयमेटाडोर मं बइठे अब तक, मुसकावत डकहर ला देख।डकहर हंस पिनकू ला कहिथय -”उतर भला तज मेटाडोरभेंट होत हे कतको दिन मं, चल गोठियाबो दिल ला खोल।अब हम तुम सब एके अस अन, कपट भेद दुश्मन अस दूरअपन बिपत ला तंय हा फुरिया, कष्ट सुने बर हम तैयार।”पिनकू मेटाडोर ले उतरिस, डकहर तिर जा हेरिस बोल-“मनसे हा कहुंचो रहि सकथय, खा पी सकथय महिनत जोंग।मगर गांव मं बसना चाहत, अब नइ चहत जांव अउ ठौरमोला इहां काम का मिलिहय, जेवन मिलिहय का भरपेट?”डकहर बोलिस -”तंय शिक्षित हस, गांव चहत हे गुन ला तोरअब हमला उन्नति करना हे, करबे मदद लगा के बुद्धि।”पिनकू मेटाडोर बिसाये, शासन तिर ले लागा मांगगांव पटाहय अब कर्जा ला, मेटाडोर गांव के होत।टहलू बोधनी ठाढ़े ते कर केंवरी हा गिस लौहा।उंकर साथ हंस के बोलत हे बिसरे पूर्व के गुस्सा।कथय बोधनी हा केंवरी ला -”हम कमाय बर मुम्बई गेनउहां कमाय गजब मिहनत कर, वास्तव मं कुहकुह थक गेन।पर अब विवश हवन निर्बल अस, इहां बिलम सकथन कुछ माहजे रुपिया गठिया लाये हन, ओमां हवय हमर अधिकार।रुपिया फेंक अनाज बिसाबो, कुछ दिन मं सब नोट खलासतंहने हम फिर मुम्बई जाबो, करबो उहां मरत ले काम।”कथय बोधनी हा केंवरी ला -”बचे हवय जतका अस उम्रइंहचे रहि के जीना चाहत, हम नइ चहत जान अउ ठौर।मगर हमर नइये घर डोली, ना मितवा न सहायक एकतब हम वापिस मुम्बई जाबो, उंहचे छुटही हमर परान।”
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits