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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
तुम्हारी आवाज इतनी
दबी-दबी सी क्यूं है
तुम्हारा चेहरा इतना
बुझा-बुझा सा क्यों है
दिन इतना अंधेरा
और रात इतनी
धूप में जैसे
खिली-खिली सी क्यों है
सच का मंजर
कालिख से इतना
पुता-पुता सा क्यों है...
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|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
तुम्हारी आवाज इतनी
दबी-दबी सी क्यूं है
तुम्हारा चेहरा इतना
बुझा-बुझा सा क्यों है
दिन इतना अंधेरा
और रात इतनी
धूप में जैसे
खिली-खिली सी क्यों है
सच का मंजर
कालिख से इतना
पुता-पुता सा क्यों है...