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{{KKRachna|रचनाकार=शेरजंग गर्ग KKGlobal}}
{{KKPustak
|चित्र= Kya-ho-gaya-kabiron-ko-kavitakosh.jpg
|नाम=क्या हो गया कबीरों को
|रचनाकार=[[शेरजंग गर्ग]]
|प्रकाशक=मेधा बुक्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली --110032|वर्ष= 2003
|भाषा=हिन्दी
|विषय=
|शैली=--ग़ज़ल|पृष्ठ=--80|ISBN=--|विविध=--
}}
{{KKCatGhazal}}====इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ====
* [[ग़लत समय में सही बयानी / शेरजंग गर्ग]]
* [[खुद से रूठे हैं हम लोग / शेरजंग गर्ग]]
* [[साल आकर बड़ी तेज़ी से गुज़र जाते है / शेरजंग गर्ग]]
* [[सादगी की मिसाल हो तुम तो / शेरजंग गर्ग]]
* [[नयन है हैं नशीले नज़रों से परिचित / शेरजंग गर्ग]]
* [[तुम्ही मिल गए हो डगर के बहाने / शेरजंग गर्ग]]
* [[न करता शिकायत ज़माने से कोई / शेरजंग गर्ग]]
* [[दूर बैठा हूँ हर हक़ीक़त से / शेरजंग गर्ग]]
* [[अब तो कहने के लिए शेष कोई बात नहीं / शेरजंग गर्ग]]
* [[फूलो की बेकरार निगाको निगाहों के आसपास / शेरजंग गर्ग]]* [[सपनो सपनों की धूमिल छाया का आकार न भूलूंगा हरगिज़ / शेरजंग गर्ग]]
* [[न देखो पीर उर की पर अधर की प्यास तो देखो / शेरजंग गर्ग]]