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नाथ ! तुम कब से हुए विरागी?
कब से टेक दया की छूटी , यह असंगता जागी?
जग की चिंता से मुँह मोड़ा
नाथ ! तुम कब से हुए विरागी?
कब से टेक दया की छूटी , यह असंगता जागी?
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