भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
म्हारै घर में
पक्की है ईंटां
रिस्ता कोनीं
जका टूट जासी
पत्थर है, भाठा है
मंजियै रा
बिसवास थोडी है
जका डिग जासी !
चूनो है
रंग-बिरंगो
ओळ्यूं कोनीं
जकी
मोळी पड़ जासी।
जे कर है मजबूत
रिस्ता-विसवास
लूंठी ओळ्यूं
ईंट, भाठा अर चूनै सूं
तो पछै
मिनख क्यूं नीं
म्हारै घर में
बा सूं मजबूत।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
म्हारै घर में
पक्की है ईंटां
रिस्ता कोनीं
जका टूट जासी
पत्थर है, भाठा है
मंजियै रा
बिसवास थोडी है
जका डिग जासी !
चूनो है
रंग-बिरंगो
ओळ्यूं कोनीं
जकी
मोळी पड़ जासी।
जे कर है मजबूत
रिस्ता-विसवास
लूंठी ओळ्यूं
ईंट, भाठा अर चूनै सूं
तो पछै
मिनख क्यूं नीं
म्हारै घर में
बा सूं मजबूत।
</poem>