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|रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’
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|संग्रह=थार-सप्तक-1 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हारै घर में
पक्की है ईंटां
रिस्ता कोनीं
जका टूट जासी
पत्थर है, भाठा है
मंजियै रा
बिसवास थोडी है
जका डिग जासी !

चूनो है
रंग-बिरंगो
ओळ्यूं कोनीं
जकी
मोळी पड़ जासी।

जे कर है मजबूत
रिस्ता-विसवास
लूंठी ओळ्यूं
ईंट, भाठा अर चूनै सूं
तो पछै
मिनख क्यूं नीं
म्हारै घर में
बा सूं मजबूत।
</poem>
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