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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रहलादराय पारीक
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
फूलां री सौरम ज्यूं
अदीठ
पण, आखर स्यूं भारी
हुवै चींत।
चींत रै ताण
तणीजै ताणे
मिनख रो, समाज रो,
आखै जगत रो।
सौधीजै सौरफ,
सगळी जीया जूंण री
चींत रूखाळै, पाळै,
सम्हाळै-मानखो।
देवै दीठ जीवण रै
उजळै परख री।
समंदर स्यूं ऊंडी,
आभै स्यूं ऊंची,
मरूस्थल रो रूंख
हुवै चींत।
ढूंढै जीवण,
मौत री काळी गार मैं।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
फूलां री सौरम ज्यूं
अदीठ
पण, आखर स्यूं भारी
हुवै चींत।
चींत रै ताण
तणीजै ताणे
मिनख रो, समाज रो,
आखै जगत रो।
सौधीजै सौरफ,
सगळी जीया जूंण री
चींत रूखाळै, पाळै,
सम्हाळै-मानखो।
देवै दीठ जीवण रै
उजळै परख री।
समंदर स्यूं ऊंडी,
आभै स्यूं ऊंची,
मरूस्थल रो रूंख
हुवै चींत।
ढूंढै जीवण,
मौत री काळी गार मैं।
</poem>