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कुरजां / चैनसिंह शेखावत

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

भीर हुवैलो
सीयाळै रै साथै-साथै
बिरहणियां रै आंसूड़ा रा कागद
जोवैला थारी बाट
आगलै मौसम री

कुरजां!
नीं जाणै म्हारी लुगायां
तू सारस है
बतख है
चिड़कली है
कै कीं और
बस इतरो जाणै
कंठां स्यूं हिवड़ै री पीड़
जद झरै-
संदेसो लेती जाइजे ए
उड़ती कुरजळियां।

</poem>
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