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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
उपाधियां रै ढिगलै माथै
चांद सफा अेकलो

आभै में
कदै इण कूणै
तो कदै उण

जितरो आगो है चांद धरती सूं
जिनगी सांच्याणी
उतरी ईज आंतरै

कदै तो इण गळी आव रै चंदा
जे हुय सकै
आभै स्यूं धरती तांईं रो
कर देखाण सफर।
</poem>
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