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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हैं देख्यो है
सैर रै आकासां में
नीबळो निरवाळो सो हांडतो

कवियां मांडी कवितावां
चितारया चितराम
प्रेमियां टांग दियो
प्रेमिकावां रै जूड़ै
फूलां भेळै

पण जे निजरां थोड़ी सावळ होंवती
दीस जांवतो मुळकतो चांद

आखी कवितावां कूड़ी
सगळा चितराम नकारा
प्रेमियां जे टणकारता चंदै
हेत चांदणी बण’र बरसतो
प्रेमिकावां माथै

म्हैं देख्यो है
अणमणै सरै सूं
रीसाणों है चांद।
</poem>
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