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सरणाटो / चैनसिंह शेखावत

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कुरस्यां माथै
बिराज्या सबद
सरणाटा हुवै

ताबूत दीसैला
इण भासावां रा

राजधानियां रै शवदाह घरां में
सबद संस्कारीजै नीं
संस्कार हुवै इणां रा आखरी

कादै भरी गळ्यां रै गळै सूं
जद निसरै
अस्फुट स्वर
धुंधळा माटी रा रंग
आभै रै बारणै
बंध जावै
सबदां री बंदणवार

सजावट सजा हुवै
सबदां खातर
अेक भासा
घिसबा सूं जवान हुवै।
</poem>
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