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निरखतौ रैयो / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थारै चैरे री मुळक नै
सांची
मुळक रै तांण
जीयो जा सकै।
ज्यूं जीया हा
म्है
आपरी मुळक रै तांण
बस
आप मुळकता रैवो
अर म्है जींवतां रैवां
आपरी मुळक रै तांण।

</poem>
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