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|रचनाकार=राजेन्द्रसिंह चारण
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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
जाग्यां बदली
जाग्यां रै सागै लोग बदळया
लोगां री सोच बदळी
सोच ज्यूं टैम बदळयो
पण फिरयो कोनी
इयांस सब बदळया
सब रा रब बदळया
ईं बदळाव में
नीं बदळी तो खाली
रोटी री तस्वीर
पेट री भूख
भूख मिटावण री
भागमभाग।
</poem>
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