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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

देख पावणा
चौकी आवतां

ताण मोद में सिर
टोकीजोड्या दोनूं हाथ।

लगा सुसरै जी रै धोक
देंवतो फेरी
बटाऊ भतूळियो

करणै सारू सिलाम
ढळग्यो
लुळतो पड़ाल कानीं।

</poem>
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