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बायरो / रचना शेखावत

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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
थूं मून अर म्हैं मून
चिनीक सी दूरी
जुगां रो आंतरो
बिचाळै पसरयोड़ो
थांरो मुंडो ई
तूंबो सो करयोड़ो।

म्हैं कीकर थिर हूं
अरे स्याणा .... बायरो
वठीनै सूं बैय‘र
एक सौरम ल्यावै।
</poem>
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