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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हैं जुवार रो पाणी
मेल‘र कनार माथै
दो-च्यार रूप री कोड़्यां
अर दो-च्यार राग रा संख
पाछी बावड़ जास्यूं
जठै सूं आईं
उण विराट रै भीतर
पण ले जास्यूं
थारै हियै रो मैल
धोय पूंछ‘र।

</poem>
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