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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
परभात, हरमेस परभात
सौरम री बुआरी सूं बुआरै
बगत रा घणां सारा पानका।

लाम्बी पूंछ आळी गिलारी
जद चौकी माथै
चिड़ी साथै
पैली चा पीवै।

म्हारी गळी-गुवाड़
गांव खेत रा सगळा रूंखां नै
पतझड़ नाई ऐक ई भच्चाकै कतर दिया
तावड़ै रो आरसी भी मुळकै आजकाळै
आं नूंआं रंगरूटां नै देख-देख।

आ पुहुपां री, सौरम री रूत
जद थांरी उडीक री हद तांई लाम्बी बधै
सै‘तूत सी आल्ली, कंवळी खट-मीठी।

भाई, खळां में पूगै मोट्यार कणक री सौरम
थारै पुराणैं कुड़तै माथै जमीं बूफण-स्याळ
मेहणत री मदभरी नींद
इण्एा बगत रो फुटरापो घड़ै।

उतरतै फागण री कळयां पूछै
पुहुपां सू भरया ऐ मारग कठै जावै।

</poem>
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