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नामहीन / शिवशंकर मिश्र

3 bytes removed, 13:39, 21 जून 2017
<poem>
तुम्हामरा कोई नाम नहीं
तुम्हेंै तुम्हें सभी, सब जगह
समान रूप से पुकारते हैं, माँ
इसीलिए तुम्हेंक सभी ही प्रिय हैं
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