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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
बगत
मुट्ठी में पक्योड़ी रेत री तर्यां
तिसळज्यै
अर म्हूं हर गेड़ै
करल्यूं खुद सूं नवो वायदो

जिनगाणी केई बार तस्सली
अर कई बार गलतफहमी सूं
राजी होज्यै

सांची तो आ है
म्हैं पकड़्यो बगत नैं
कदैई कंवळै अर कदैई सख्त हाथां सूं

पण ओ मिल्यो हमेस ई
गरीब री झूंपड़ी
मजदूर रै पसीनै
का फुटपाथ माथै
फकीरी मांय गुणगुणावतै मिनखां रै मन

म्हूं डूबणों चाऊं
इणरै दरसण मांय।
</poem>
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