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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आग थरपीजण
सबद हांफळै
चेतना-बदळाव अनै प्रीत
किता-किता धारै रूप
तप री आंच ई तपै
आस्थावां में ओटीजै
हेत में गळै
भाईपै में कुढै
किता बिलखता होसी
इक दूजै सूं मिल-मिल
जद देखता होसी
दुसाला ओढ़-नारेल झाल
नगदी पुरस्कार लेय
मुळकता आंवता
सबदां रा जमींदारां नै
लटूरिया करतां नैं!
</poem>
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