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पैन / हरीश हैरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
तू याद कर
मैं थारी कलास में
जद पैन मांगण आयो
अ'र तू म्हनै
उतावळी हो'र पैन दियो
मैं पैन पूठो सौंप्यो
जद तू बोली-
थान्नै जरूरत है
थे ई राखो
ओ पैन, पैन नीं हो
दिल हो थारो
जको सौंप दियो
हरमेस सारू म्हनै तूं!
</poem>
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