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लिछमी / हरीश हैरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
नवी बीनणी
घर में आंवतै बगत
पगथळी में
धान सूं भरयोड़ै
कुल्हडिये रै
पग री ठोकर लगाई
खिंडेङै धान नै देख'र
लुगाईयां केवै ही
लिछमी आई है!
</poem>
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