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{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमान प्रसाद बिरकाळी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
गांव नै भी अब
सैर री हवा लागगी
सौ कीं बदळग्यो
नीं सीर है
नीं नीर है
नीं बीर है
नीं चीर है
नीं सग्गा है
नीं सरीक हे
नीं रीत है
नीं प्रीत है
नीं सावो है
नीं सगपण है
नीं चंवरी है
नीं चंग है
सगळा तंग है
नीं हथाई है
नीं हुंकारो है
नीं गोबर है
नीं गारो है
गांव में बस
फगत सैर जेड़ो ई
थारो म्हारो है।
</poem>
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|रचनाकार=हनुमान प्रसाद बिरकाळी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
गांव नै भी अब
सैर री हवा लागगी
सौ कीं बदळग्यो
नीं सीर है
नीं नीर है
नीं बीर है
नीं चीर है
नीं सग्गा है
नीं सरीक हे
नीं रीत है
नीं प्रीत है
नीं सावो है
नीं सगपण है
नीं चंवरी है
नीं चंग है
सगळा तंग है
नीं हथाई है
नीं हुंकारो है
नीं गोबर है
नीं गारो है
गांव में बस
फगत सैर जेड़ो ई
थारो म्हारो है।
</poem>