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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
(12)
आछी तरियां रोटी ढक'र राधा दफ्तर जांवती
लारै स्यूं बिलड़ी आ'र रोज-रोज खांवती
होगी जणा तंग
सोच्यो नयो ढंग
आती बरियां कम्प्यूटर में फीड कर'र आंवती।

(13)
गांव में नामी चोर होया करतो 'गोरियो'
पक्को पाकेटमार हो, मानेड़ो सटोरियो
गयी खुद री बरात
ढुकाव वाळी रात
नेण करती सासूजी रो तोड़ लियो बोरियो।

(14)
पाड़ौसी स्यूं बळ्या करतो जीतसिंह 'जोधा'
सुहाता कोनी पाड़ौसी रै बगीचै रा पौधा
नीयत ही बद
कर दी बण हद
फाटक खोलर बाड़ दिया दो चार गोधा।

</poem>
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