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|रचनाकार=वाज़िद हसन काज़ी
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पाणी
बैवै ऊपरां सूं नीचै
चुपचाप
बणावै आपरौ मारग खुद
आवौ भलैई कितरा ई अटकाव

पण
करै लगौलग आपरौ काम
अर पूग जावै
आपरी मंजळ तांई

के
सूख'र मेट देवै
आपरौ अेनांण

देवै सीख मिनख नैं
चुपचाप लगौलग
आपरौ काम करियां ई
मिळै मंजळां
अर मिटती जावै अबखायां

आपौ आप
तौ पकड़ गैलो
मंजलां मारै हेलौ।
</poem>
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