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अंधे राजा के सब पहरेदार सो गये,
प्रजा सजग है धोख धोखे में दरबार मगर है।
गाँव छज्ञेड़कर छोड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया,
पुठपाथों पर जगह नहीं सम्पन्न शहर है।
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