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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
सारू कोनी नहर रै
पण कीं बाकी कोनी रैवै
जद खूट जावै पाणी
पीळी पड़ जावै फसलां
किरसै रै सागै
मगसो पड़ जावै
नहर रो ई उणियारो।
बिना पाणी
जद कळपै
उणरी गोदी रमता
जळचर
झर-झर रोवै
उणरी आतमा।
सेवट मा है बा
कींकर अणजाण रैवै
टाबरां री पीड़ सूं।
</poem>
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<poem>
सारू कोनी नहर रै
पण कीं बाकी कोनी रैवै
जद खूट जावै पाणी
पीळी पड़ जावै फसलां
किरसै रै सागै
मगसो पड़ जावै
नहर रो ई उणियारो।
बिना पाणी
जद कळपै
उणरी गोदी रमता
जळचर
झर-झर रोवै
उणरी आतमा।
सेवट मा है बा
कींकर अणजाण रैवै
टाबरां री पीड़ सूं।
</poem>