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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
बै बातां में मगन है
म्हैं कविता सारू जूझूं।

बां बातां ई बातां में कथ दी
सांतरी कविता।

म्हारै हाथ
कविता तो दूर
बात ई कोनी आई!
</poem>
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