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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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<poem>
जद कीं नीं हो
धरती माथै
फगत जळ हो।
जद कीं नीं रैवैला
धरती माथै
फगत जळ रैवैला।
जळ ई जीवण
रचाव का उजाड़
अदीठ रै हाथ!
</poem>
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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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जद कीं नीं हो
धरती माथै
फगत जळ हो।
जद कीं नीं रैवैला
धरती माथै
फगत जळ रैवैला।
जळ ई जीवण
रचाव का उजाड़
अदीठ रै हाथ!
</poem>