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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
नदी की धार मोड़ दो तो कोई बात बने।
हमारे गाँव में लाओं तो कोई बात बने।
हमारे गाँव से दिल्ली तुम्हारी दूर बहुत,
यहाँ से राज चलाओं तो कोई बात बने।
गरीब आदमी तो कोशिशें कर –कर के थका,
नसीब उसका बदल दो तो कोई बात बने।
कहाँ ज़रूरी है ये हर ज़मीन समतल हो,
जिगर पहाड़ का काटो तो कोई बात बने।
</poem>
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|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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नदी की धार मोड़ दो तो कोई बात बने।
हमारे गाँव में लाओं तो कोई बात बने।
हमारे गाँव से दिल्ली तुम्हारी दूर बहुत,
यहाँ से राज चलाओं तो कोई बात बने।
गरीब आदमी तो कोशिशें कर –कर के थका,
नसीब उसका बदल दो तो कोई बात बने।
कहाँ ज़रूरी है ये हर ज़मीन समतल हो,
जिगर पहाड़ का काटो तो कोई बात बने।
</poem>