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आज प्राण के तार-तार सुरनभ को क्या हुआ ये, जल रहा क्योंसौ-सौ साध रहेदेखता हूँ, चाँद काला हो गया हैदोगुण-तिरगुण नहीं ताल कल जो चन्दन केवनों में घूमता थासारे रंग बहेस्वप्न वह, सुन्दर चिता पर सो गया हैहै बहुत सूनी जगह और रात कालीमैं अकेला हूँ, बहुत मन आज कहाँ से उमड़ पड़ रहेदहले।इतने सुरयह अन्धेरा, लययह अकेलापन असह्य हैमेरे साथी, ताल साथ मेरे ही रहो तुमगीत कल तक मैंने जो गाए थे, सुनाओकल कहानी जो कही थी, फिर कहो तुममैं सभी कुछ झेल लूँगा, पर अभी तो लगता था जैसेसब संगीत गए।दिल को बहलाओ कहीं से, कुछ तो बहले।
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