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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
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<poem>
दिल जो घूमा करता था आवारा-सा।
टूटा तो वापस लौटा बेचारा-सा।

जाने क्यों ली उसने आँखें फेर मगर,
वेा तो था मेरी आँखों का तारा-सा।

नाम के मेरे बहुतेरे मिल जायेगे,
रूप किसी का लेकिन नहीं हमारा-सा।

कब बेहया कहे, कब सदाबहार कहे,
जग यह कब किस पर बरसे अंगारा-सा।

तिनका भले सहारा बनता औरों का,
खुद फिरता बेचारा मारा-मारा सा।
</poem>
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