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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद सोनवानी 'पुष्प'
|संग्रह=
}}
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<poem>
मोर जनम भूई के माटी ला,
सरधा के दो फूल अरपन हे।
एखर सेवा रक्षा बर,
मोर जीव घलो समरपन हे।
जनम भूई हावे महतारी,
जनम भूई पहिचान रे।
जनम भूई के करबो पूजा,
जनम भूई महान रे।
जतन करो एखर गा भईया।
मोर माँथ पसीना तरपन हे।
ऐ माँटी म जनम लेवईया,
कतका भरे परे हें जी।
अउ एक नवां इतिहास रचईया,
मईनखे कहे गीस हे जी।
ऐ माँटी म गुरु के मूरत।
दाई -ददा के दरसन हे।
</poem>
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मोर जनम भूई के माटी ला,
सरधा के दो फूल अरपन हे।
एखर सेवा रक्षा बर,
मोर जीव घलो समरपन हे।
जनम भूई हावे महतारी,
जनम भूई पहिचान रे।
जनम भूई के करबो पूजा,
जनम भूई महान रे।
जतन करो एखर गा भईया।
मोर माँथ पसीना तरपन हे।
ऐ माँटी म जनम लेवईया,
कतका भरे परे हें जी।
अउ एक नवां इतिहास रचईया,
मईनखे कहे गीस हे जी।
ऐ माँटी म गुरु के मूरत।
दाई -ददा के दरसन हे।
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