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Kavita Kosh से
गॅाव मेरा, शहर से दूरबीन लेकर देखता है।
स्वाद सूखी रोटियों का, भात का होता है क्याकैसा
चैम्बर में बैठकर वो जूस पीकर देखता है।
वो बड़ा नेता है उससे आप बच करके रहेंही रहिये
वो दरो -दीवार तक कुर्सी को लेकर देखता है।
चार छै दस के सिवा अलावा कौन उसको मानताउसका साथ देगा
किन्तु वो ख़ुद को ग़लतफ़हमी में रखकर देखता है।
आपके सारे घोटाले वो निरक्षर देखता है।
देवता बेशक़ नहीं, पर वो बड़ा इन्सान तो है,
हर किसी का दर्द जो अपना बनाकर देखता है।
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