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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
दिहाड़ी पर
जिंदगी
डेहरी
ड्रम
छूँछे
कँगाली मानो
सिर से ऊपर
तीन दिन
बेटी नहीं गयी
काम पर
निकल आयीं
त्योरियों की
बरछियाँ
और पूरा परिवार
फाँके पर
</poem>
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|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
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दिहाड़ी पर
जिंदगी
डेहरी
ड्रम
छूँछे
कँगाली मानो
सिर से ऊपर
तीन दिन
बेटी नहीं गयी
काम पर
निकल आयीं
त्योरियों की
बरछियाँ
और पूरा परिवार
फाँके पर
</poem>