भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
1,386 bytes added,
13:05, 5 अक्टूबर 2017
{{KKCatKavita}}
<poem>
उसने कहा था कि मैं सुबह तकदेख रहा हूँ-जरुर लौट आऊँगाद्रोपदी/फिर कीचक की सुलगती आँखों कीपर शिकार हो गई है/वह लौटता कैसेचीख रही हैजिसकी जिन्दगी कि भीम को बुला रही हैइधर उत्तरा का विलाप हैचक्रव्यूह मेंफंसे अभिमन्यु के लिएकभी सुबह हुई ही नहींजो सप्त महारथियों से घिरा खून से लथपथ हैऔर जिसके हाथ में अन्याय के विरुद्धलड़ने के नाम पर/अब बच गया है बसएक टूटा हुआ पहियाआखिर कब तक टिकेगा सुभद्रा कुमारद्रोणाचार्य ने उसे निरस्त्र करने या कि उसकी हत्या कीतमाम साजिशों को दुरुस्त कर रखा हैलेकिननियोजित कुचक्रों के विरुद्धवह हारा नहीं पार्थसुत लड़ रहा हैअकेला हीवह जरुर लौटेगायुगों के अन्याय-अधर्म के खिलाफऔरउसे उसकी कुछ भी परवाह नहींइस बारकि जिनसे अपेक्षा की थी सहयोग कीजब वह लौटेगावे भी युद्धस्थल के किनारे-किनारेतो उसके हाथ तमाशबीन की तरह खड़े हैंआसन्न मृत्यु से भयभीतशीलीभूत हुई सुभद्रा/मूक हो गयी हैगिद्धों की छाया मेंएक नया सूरज होगासियार और श्वानों का शोर जारी है
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader