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उदासी के महीनों में
केवल तुमसे प्यार करते समय ही
खुशी झिलमिलाई जीवन में
जैसे जुगनू जलता है और बुझता है, जलता है और बुझता है
और इन झलकियों में
अँधेरे में भी हमें पता चल जाता है
जैतून के पेड़ों के बीच उसकी उड़ान का

उदासी के महीनों में आत्मा सिमटी पड़ी रही, बेजान
मगर देह गई सीधे तुम्हारे पास
गरजता रहा रात में आकाश
चोरी-चोरी हमने दुह लिया ब्रह्माण्ड को
और बचे रहे

'''(अनुवाद : मनोज पटेल)'''
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