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भोर होने वाली है / सुरेश चंद्रा

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आह्लाद अवसाद में
अंधियारे उजास में
तुम किस ओर रहो ??
मुझे रहने दो तमस
तुम निराश न रहो
रहने दो इर्द -गिर्द दर्प, दम्भ, दंश सारे
केवल अंदर न पनपने दो
विक्षुब्धता अंश मात्र भी तुम्हारे
तुम्हारे अंदर गहरे गहन घुप्प में
भोर होने वाली है, भोर होने वाली है ... ... .... !!
</poem>
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