भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
आह्लाद अवसाद में
अंधियारे उजास में
तुम किस ओर रहो ??
मुझे रहने दो तमस
तुम निराश न रहो
रहने दो इर्द -गिर्द दर्प, दम्भ, दंश सारे
केवल अंदर न पनपने दो
विक्षुब्धता अंश मात्र भी तुम्हारे
तुम्हारे अंदर गहरे गहन घुप्प में
भोर होने वाली है, भोर होने वाली है ... ... .... !!
</poem>