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कितनी भीड़ में रहते हो
तब वो, अब ये, जाने जब
कब-कब, क्या ??
कितने चेहरे, जिस्म, तिलिस्म
ऊब जाते हो पर थकते नहीनहीं
वही कवायद हर सुबह से शाम
आज बह जाना फिर किसी ज़र्द रंग में
रोज़ फ़हम को फाख्ता फ़ाख्ता वहम का फरेब फ़रेब
नई कमीज रोज़ाना, ख़ास्ता वैसी ही जेब
कितने अकेले फिरते हो, साथ अपने, ज़िन्दगी भर
मुक़म्मल दिखाते हुये हुए झूठे, हर-एक-एक बात पर
तुम किस से चाहते हो मरहम और सुकून
सब जल -जल धुँआ होगा, ज़ज़्बा, सुकून
तुम किस को, सच,लगने दोगे अपनी हवा
न कोई, हो भी सकेगा, उम्र भर, तुम्हारी दवा
कितनी भीड़ में रहते हो
तब वो, अब ये, जाने जब
कब-कब, क्या ??
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