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इश्‍तहार / महाप्रकाश

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जुलूस और दंगा हैं पहरेदार
शहर में बंद है खिडकी
और दरवाजों के किवाड
भीतर शतरंज की चाल
युद्ध का पूर्वाभ्‍यास
बाहर भूख से चिल्‍लाते लोग
जनतंत्र के जीवंत इश्‍तहार।
</poem>
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