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{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
यात्रा में हर बार
पुरातन कुछ छूट जाता है
और आ मिलता कुछ नवीन।
यह पगथलियों के साथ आने वाले
अथवा अंजुरी में भर जाने वाले
मिट्टी-जल-फूल-पत्तियों के बारे में नहीं है।
यह आकाश के तारों के लिए है
जो आंखों में आ बसते हर यात्रा में
और छूट जाते
आंसुओं की तरह।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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यात्रा में हर बार
पुरातन कुछ छूट जाता है
और आ मिलता कुछ नवीन।
यह पगथलियों के साथ आने वाले
अथवा अंजुरी में भर जाने वाले
मिट्टी-जल-फूल-पत्तियों के बारे में नहीं है।
यह आकाश के तारों के लिए है
जो आंखों में आ बसते हर यात्रा में
और छूट जाते
आंसुओं की तरह।
</poem>