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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
}}
[[Category:दोहे]]{{KKCatDoha}}<poem>
भीगे राधा के नयन, तिरते कई सवाल ।<br>कभी न ऊधौ पूछता, ब्रज में आकर हाल।।1
कभी न ऊधौ पूछताचिट्ठी अब आती नहीं, ब्रज में आकर हाल।।1 <br><br>रोज सोचता बाप।जब- जब दिखता डाकिया, और बढ़े संताप ।।
रह रहकर के काँपते, माँ के बूढे़ हाथ ।
बूढ़ा पीपल ही बचा, अब देने को साथ ।।3
चिट्ठी अब आती नहींबहिन द्वार पर है खड़ी, रोज सोचता बाप।<br>देखती बाट ।लौटी नौकाएँ सभी, छोड़- छोड़कर घाट ।।4
जब- जब दिखता डाकियाआँगन गुमसुम है पडा़, और बढ़े संताप ।।2<br><br>द्वार गली सब मौन ।सन्नाटा कहने लगा, अब लौटेगा कौन ।।5
नगर लुटेरे हो गये, सगे लिये सब छीन ।
रिश्ते सब दम तोड़ते, जैसे जल बिन मीन ।।6
रह रहकर के काँपतेरोज काटती जा रही, माँ के बूढे़ हाथ ।<br>सुधियों की तलवार।छीन लिया परदेस ने, प्यार- भरा परिवार।।7
बूढ़ा पीपल ही बचावह नदिया में तैरना, अब देने को साथ ।।3<br><br>घनी नीम की छाँव।रोज रुलाता है मुझे, सपने तक में गाँव।।8
हरियाली पहने हुए, खेत देखते राह ।
मुझे शहर मे ले गया, पेट पकड़कर बाँह।।9
बहिन द्वार पर है खड़ीडबडब आँसू हैं भरे, रोज देखती बाट नैन बनी चौपाल <br>किस्से बाबा के सभी, बन बैठे बैताल ।।10
लौटी नौकाएँ सभी, छोड़- छोड़कर घाट ।।4<br><br>  आँगन गुमसुम है पडा़, द्वार गली सब मौन ।<br> सन्नाटा कहने लगा, अब लौटेगा कौन ।।5<br><br>  नगर लुटेरे हो गये, सगे लिये सब छीन ।<br> रिश्ते सब दम तोड़ते, जैसे जल बिन मीन ।।6<br><br>  रोज काटती जा रही, सुधियों की तलवार।<br> छीन लिया परदेस ने, प्यार- भरा परिवार।।7<br><br>  वह नदिया में तैरना, घनी नीम की छाँव।<br> रोज रुलाता है मुझे, सपने तक में गाँव।।8<br><br>  हरियाली पहने हुए, खेत देखते राह ।<br> मुझे शहर मे ले गया, पेट पकड़कर बाँह।।9<br><br>  डबडब आँसू हैं भरे, नैन बनी चौपाल ।<br> किस्से बाबा के सभी, बन बैठे बैताल ।।10<br><br>  बँधा मुकददर गाँव का, पटवारी के हाथ।<br> दारू -मुर्गे के बिना तनिक न सुनता बात।।11<br><br/poem>