भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मां (2) / कैलाश पण्डा

939 bytes added, 04:04, 21 दिसम्बर 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश पण्डा |अनुवादक= |संग्रह=स्प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ओ माँ,
जगत्तारिणी माँ
तू तरूवर सी छाया
तेरे आंचल में
विश्व समाया
ओ माँ
तू प्रकृति की आद्या शक्ति
तेरे ही कारण
सम्पूर्ण प्राणी
जीवन पाकर
पृथ्वी के कण-कण में आश्रित
ओ ममतामयी, निजस्वार्थ को भूल
परताप से पीड़ित
परसुख से हर्षित
तुम जीती हो
ओ माँ
मैंने देखे तेरी आंखों मेें
स्नेहिल कण।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits