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{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं सोचता हूं
उन लोगों के बारे में
जिनके पूरे सप्ताह
नहीं आता कभी कोई रविवार
क्योंकि रविवार का आना उनके घर
होता है एक अपशकुन की तरह
जैसे बैठ जाए चूल्हा
मिट्टी का
मूसलाधार में।
सोचकर सहम जाती है घरवाली
और बच्चे उदास।
सर्दी-गर्मी-आंधी-बरसात
हारी-बीमारी
ये कर्मयोगी मुंह अंधेरे
निकल पड़ते काम पर।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
मैं सोचता हूं
उन लोगों के बारे में
जिनके पूरे सप्ताह
नहीं आता कभी कोई रविवार
क्योंकि रविवार का आना उनके घर
होता है एक अपशकुन की तरह
जैसे बैठ जाए चूल्हा
मिट्टी का
मूसलाधार में।
सोचकर सहम जाती है घरवाली
और बच्चे उदास।
सर्दी-गर्मी-आंधी-बरसात
हारी-बीमारी
ये कर्मयोगी मुंह अंधेरे
निकल पड़ते काम पर।
</poem>